Saturday, December 9, 2023
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संगीत से दुनिया को रोशन करने में माहिर थे रविंद्र जैन, मन की आंखों से ही लिख दी थी ब्रज की होली— News Online (www.googlecrack.com)

Ravindra Jain Unknown Facts: उनकी आंखों में रोशनी नहीं थी, फिर भी वह अपने गानों से किसी भी चीज का वर्णन इस कदर कर देते थे, जैसे वह उन्होंने सजीव देखी हो. यकीनन हम दिग्गज संगीतकार और गीतकार रविंद्र जैन का जिक्र कर रहे हैं, जिन्होंने जो भी लिखा, बिना देखे लिखा और पूरे देश को अपना दीवाना बना लिया. ब्रज की होली भी इससे इतर नहीं है. आलम यह रहा है कि उनके गीतों पर दुनिया झूम उठी. 9 अक्टूबर 2015 के दिन वह इस दुनिया को अलविदा कह गए थे. आइए आपको उनकी जिंदगी के चंद किस्सों से रूबरू कराते हैं. 

अलीगढ़ में हुआ था रविंद्र जैन का जन्म

अलीगढ़ के मोहल्ला कनवरीगंज में 8 फरवरी 1944 के दिन जन्मे रवींद्र जैन ब्रज जन्म से ही नेत्र दिव्यांग थे, लेकिन उनके मन की आंखों के रंग से कोई नहीं बच पाया. उन्होंने फिल्मों के लिए दर्जनों होली गीत लिखे, जिनमें रंगों की बौछार करती टोलियों, आपसी नोकझोंक, हुरियारों की मस्ती और हंसी-ठिठोली को उन्होंने इस अंदाज में पेश किया, जैसे वह उन्हें सजीव देखते हों.

पूरे देश को बना लिया अपना दीवाना

अपने सुरमयी संगीत और खनकती आवाज के दम पर रविंद्र जैन ने हर शख्स के दिल में अपने लिए खास जगह बना ली. दरअसल, वह बचपन से ही जैन भजन और जैन कवियों की कविताएं पढ़ने और गाने लगे थे. इसके अलावा उन्होंने दादा-दादी की कहानियों, रामायण और लव कुश जैसे मशहूर कार्यक्रमों को भी अपने संगीत से सजा दिया. आलम यह रहा कि उनके गीतों की दुनिया दीवानी हो गई. 

कोलकाता में ली थी संगीत की शिक्षा

रविंद्र जैन के पिता पिता इंद्रमणि जैन आयुर्वेदाचार्य थे. उनके सात भाई-बहन थे. नेत्र दिव्यांग होने की वजह से पूरा परिवार रविंद्र के भविष्य को लेकर चिंतित रहता था, लेकिन उन्होंने सूरदास से प्रेरणा लेकर संगीत की साधना शुरू कर दी. इसके लिए उन्होंने कोलकाता में संगीत की शिक्षा ली. वहीं, 1969 के दौरान मुंबई पहुंचकर फिल्मी दुनिया में कदम रखा. उस दौरान मायानगरी में एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गज संगीतकारों का दबदबा था. इसके बावजूद रविंद्र जैन ने भारतीय शास्त्रीय व लोक संगीत पर आधारित कर्णप्रिय गीतों से लोगों के दिल में जगह बना ली. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रविंद्र अपने उसूलों के बेहद पक्के थे. जब वह फिल्म सौदागर के लिए गानों की रिकॉर्डिंग कर रहे थे, उस दौरान उनके पिता का निधन हो गया, लेकिन वह अपना काम खत्म किए बिना नहीं निकले. 

होली के गानों में भरे मन के रंग

रविंद्र जैन ने अपने गीत और संगीत से होली के रंगों को और गहरा कर दिया. होली आते ही उनके गीत जुबां पर चढ़ने लगते हैं. फिल्म नदिया के पार का जोगी जी धीरे-धीरे, जोगी जी वाह…जोगी जी… तो आज भी हर होली पार्टी में जान फूंक देता है. इसके अलावा फिल्म खून खराबा’ का गीत ‘होली आई रे…’ से लेकर गोपाल कृष्णा फिल्म का ‘आयो फागुन हठोलो, गोरी चोली पै पीलो रंग डारन दे…’ भी जमकर धूम मचाते हैं. इसके अलावा फिल्म षड्यंत्र का ‘होली आई होली..हां मस्तानों की टोली, सबके लबों पे प्यार भरी बोली’ का सुरूर भी किसी से छिपा नहीं है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आरके स्टूडियो की होली पार्टी की शुरुआत अगर रंग बरसे भीगे चुनर वाली गीत से होती थी तो पार्टी अंजाम पर ‘जोगी जी धीरे-धीरे’ से पहुंचती थी.

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