Sunday, June 4, 2023
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SCO समिट पर क्यों टिकी हैं दुनिया की नजरें, पश्चिमी देशों की परेशानी की क्या है असली वजह— News Online (www.googlecrack.com)

SCO Summit 2022 in Uzbekistan: उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन हो रहा है. पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत एससीओ (SCO) के अन्य सदस्य देशों के नेताओं के साथ सम्मेलन में हिस्सा लिया. इस सम्मेलन में क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों, व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ावा और सहयोग देने समेत कई दूसरे मसलों पर चर्चा हो रही है. पीएम मोदी ने कहा, “मुझे खुशी है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. कोविड के कारण कई वैश्विक व्यवधान आए. हम भारत को एक विनिर्माण केंद्र में बदलना चाहते हैं.”

समरकंद में हो रहे एससीओ सम्मेलन में पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की द्विपक्षीय मुलाकात पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं. रूस-यूक्रेन जंग के बीच अमेरिका ने कई बार भारत पर दबाव बनाने की कोशिशें की थीं, लेकिन भारत ने खुलकर यूक्रेन में हमले का विरोध नहीं किया और यही वजह है कि दोनों देशों के बीच संबंध और मजबूत हुए.

पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात पर नजरें

शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन समिट (SCO Summit) में पीएम मोदी ऐसे तो सभी नेताओं से हाथ मिलाया, लेकिन सबकी नजरें मोदी-पुतिन की बैठक पर खास तौर से टिकी हैं. खास तौर से अमेरिका का इस मुलाकात पर खास नजर है. पश्चिमी देश जब रूस के खिलाफ कई तरह के प्रतिबंध लगा रहे थे, ऐसे समय में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ कई प्रस्तावों पर वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहकर उसकी अप्रत्यक्ष तौर से सहायता की थी.

भारत ने कैसे की रूस की मदद?

यूक्रेन में हमला करने के बाद अमेरिका ने रूस के खिलाफ भारत को सख्त रूख अख्तियार करने को लेकर कई बार दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन भारत ने अहने हितों का ध्यान रखते हुए तटस्थ रहने की कोशिश की. अमेरिका चाहता था कि रूस को दुनिया से अलग-थलग करने के लिए भारत भी इसमें साथ दे, लेकिन भारत की भी अपनी ऊर्जा और सैन्य जरूरतें हैं. उन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत कुछ हटकर अपनी विदेशी नीति पर चल रहा है. प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदा.

कैसे अहम है एससीओ सम्मेलन?

एससीओ में भारत के अलावा कजाकिस्तान, चीन, रूस, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. ईरान और बेलारूस भी इस संगठन में शामिल होने के लिए तैयार हैं. यूक्रेन और रूस के बीच जंग के अलावा ताइवान जलसंधि मार्ग में चीन के आक्रामक रवैये से भू-राजनीतिक उथल-पुथल है. ऐसे में 8 देशों के प्रभावशाली ग्रुप के बीच एससीओ सम्मेलन बेहद खास है. 15 सितंबर को बेलारूस और उज्बेकिस्तान एग्रोएक्सप्रेस लॉन्च करने पर सहमत हुए. पुतिन और शवकत मिर्जियोयेव ने रूस-उज़्बेकिस्तान के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी की घोषणा पर साइन किए. उज्बेकिस्तान और चीन ने कुल 15 अरब डॉलर के व्यापार और निवेश के एक समझौते पर सहमत हुए.

पश्चिमी देशों की परेशानी की क्या है वजह?

समरकंद (Samarkand) में एससीओ शिखर सम्मेलन (SCO Summit) में रूस (Russia), चीन (China) तो सदस्य के दौर पर शामिल हुआ ही है. ईरान भी इस बैठक में शामिल है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी एक ही मंच पर हैं और यही बात अमेरिका को खटक रही है. ये तीनों देश अमेरिका के दुश्मन माने जाते हैं. 

इसके अलावा इसमें पाकिस्तान और तुर्की के नेता भी शामिल हुए हैं, जिसे अमेरिका शक की निगाह से देखता है. ईरान पर तो पहले से ही अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है. इस मंच पर अमेरिका के खिलाफ रहने वाले देशों की तदाद ज्यादा है. यहां रूस भी है, चीन भी, ईरान भी और पाकिस्तान के साथ तुर्की भी है. यानी अमेरिका जिन देशों को अपना दुश्मन या फिर जिन्हें अपने लिए हित में नहीं मानता है वो सभी इस मंच पर हैं. इन दुश्मनों की एक साथ एक मंच पर मौजूदगी अमेरिका को कभी नहीं भाएगा.

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